विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जो अनेक जन्मों की संचित दुर्वासनाओं को नाश करने वाला है, जो लक्ष्मी-नारायण, ब्रह्मादि देवताओं को दुर्गम महा-माधुर्य भली प्रकार ज्ञापन कराने वाला है, जो मातृवत् अपने अनन्य भक्तों के अपराधों को क्षमा करने वाला है, वह मनोहर श्रीवृन्दावन श्रीराधा के चराण-कमलों को (हृदय में) धारण कर आनन्द प्राप्त कर रहा है, उसकी जय हो।।86।।
उज्ज्वलरस की परम सीमा, माधुर्य का एकान्त प्रकर्ष आनन्दराशि की परम चमत्कृति, हरिकृपा-स्नेहादि के पूर्ण युक्त, सर्वाश्चर्य शिरोमणि, अविचल सौंदर्यमय श्रीराधामाधव को उत्तंग अनंग रसोत्सव दान करने वाले इस मनोहर श्रीवृन्दावन की जय हो।।87।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज