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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जो श्रीवृन्दावन समस्त सुमधुर दिव्य दिव्य ऋतुओं से सेवित हो रहा है, अनादि आनन्द चिद्घन विस्तृत लता-गुल्मादि से पूर्ण हो रहा है, जो दिव्य जलपूर्ण सरोवरों और नदियों तथा मणिमय पर्वतों श्रीरत्नलतागृहों से शोभित हो रहा है, एवं जो दिव्य पक्षि-मृगों में विचित्रता को धारण कर रहा है- उस श्रीवृन्दावन का दर्शन कर।।84।।
श्रीवृन्दावन ही निखिल मुख्य-विज्ञानों से पावनतम है श्रीवृन्दावन ही अनायास सर्व अर्थो (धर्म-अर्थ-काम एवं मोक्ष) की प्राप्ति का महा साधन है, एवं श्रीवृन्दावन ही सर्वोत्कृष्ट साध्यों का एकमात्र अधिष्ठान है ऐसे कोटि प्राणतुल्य परम प्रियतम श्रीवृन्दावन का कौन सेवन नहीं करेगा।।85।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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