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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जो नित्य, निर्विकार असमोद्ध्र्व गुणवान् एवं अप्राकृत स्वभाववान् निर्दोष नित्यमुक्त हैं, तथा जिनके दिव्य अनुभाव समूह को वेदगण नित्य समुच्च स्वर से गान करते हैं, जो आनन्द तथा असीम ज्ञान-रसघन विग्रह धारण करने वाले हैं और कृष्णभावेक मग्न हैं, तथा निखिल जगत् के सर्व पुरुषार्थों को देने वाले हैं, ऐसे श्रीवृन्दावन के वृखों की मैं वनदना करता हूँ।।52।।
दिव्य दिव्य अनेक विचित्र पुष्प-फलों के भार से जो झुक रहे हैं, बहुत दूर तक विस्तृत एवं बहुत ऊँचे हैं, पक्षियों के कोलाहल से जो मुखरित हो रहे हैं एवं पत्र-पल्लवों के द्वारा जो छिद्ररहित हैं, जिनके चारों ओर अलिगण गुंजार कर रहे हैं ऐसे उत्कृष्ट रसघन-सुधाराशि बरसाने वाले श्रीवृन्दावन के वृक्षों की मैं वन्दना करता हूँ।।53।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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