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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
धन, पुत्र कलत्रादि के प्रति जो मेरी ममता है, वही मुझे तापित करने वाली है। अतएव वह समस्त त्यागकर यह श्रीवृन्दावन ही मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ है।।46।।
महा असहनीय दुखराशि और उन्मत्त करने वाले अनेक सुख भी मेरी श्रीवृन्दावन में प्रीति को चलायमान नहीं कर सकते।।47।।
श्रीवृन्दावन के निकुंजों में नित्य-विहार करने वाले गौरश्यामात्मक महाश्चर्यमय श्रीयुगलकिशोर ही मेरे जीवन हैं।।48।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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