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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जो लता ‘हे वरांगिणि-नृत्य कर’ -श्रीराधा की इस उक्तिमात्र से ही नृत्य करने लगती है, ‘‘गान कर’’ ऐसा कहने से भ्रमर की झंकरवत् मनोमद गान करती है, ‘‘क्रन्दन कर’’-इस वचन से मधु बरसाने लगती है एवं ‘‘हास्य कर’’- इस वाक्य से प्रफुल्लित हो उठती है और ‘‘वृक्ष को आलिंगन कर’’ इस उक्ति से पुलकित गुच्छ होकर वृक्ष को आलिंगन करती है’- ।।37।।
‘‘मेरे प्राणेश्वर को प्रणाम कर’’- यह वाक्य सुनते ही भूमि पर पड़ जाती है, इस प्रकार श्रीराधा की आज्ञावशवर्तिनी होकर मैं श्रीवृन्दावन] की कोई एक लता बनूँगी, जिससे श्रीराधा के अपने कर कमलों से सुन्दर जल द्वारा सिंचित होकर पुष्टिलाभ करूँगी एवं श्रीहरि सन्तुष्ट हाकर मुझको ‘‘मेरी कान्ता बनो’’ बोल कर श्रेष्ठ आशीर्वाद करेंगे ।।68।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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