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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जीवित अवस्था में ही मृताप्राय होकर देहादि का ‘अहं मम’ भाव त्याग करके प्रेमरस वर्षाकारी श्रीवृन्दावन में कब मैं वास पा सकूंगा।।25।।
जिनके चरणों की रज ब्रह्मा शिवादिकों को भी पवित्र करती है, वे श्रीवृन्दावन-वासी सब भाव से मेरे सेव्य हैं।।26।।
जिन्होंने श्रीराधा जी के तन का स्पर्श किया है, वे शुद्ध चिद्रस-मूर्त्ति हो गए हैं एवं उनमें अपने-पराये का भाव अदृश्य हो गया है अतः उन्हें श्रीशुकादि महापुरुष भी नमस्कार करते हैं।।27।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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