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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
जहाँ माधव पुलकित होकर मस्तक आन्दोलन करते हुए डोलामय कुण्डलों से एवं मुखचन्द्र की छटा से चारों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं तथा अपनी वंशी से उन्मादनकारी गुणों का अलाप करते हैं एवं जो कमलनयन प्राणेश्वरी वल्लभ श्रीमोहन को एकान्त प्रिय है, श्रीगोवर्धन का मुकुटमणि महारत्न-श्रेष्ठ, यही श्रीराधाकुण्ड है।।13।।
हे सखे! परम उत्कृष्ट श्रीवृन्दावन शोभा के द्वारा भी जो प्रशंसनीय है, श्रीहरि-प्रिय श्रीगोवर्धन गिरिराज भी उसकी आदर से वन्दना करता है, श्रीराधा-कृष्ण की काम कलाओं की माधुर्य शोभा से परिपूर्ण श्रीराधाकृण्ड स्थित उस लता-मण्डप समूह को स्मरण कर ।।14।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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