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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
थोड़े और अति मनोहर निकुंजों से परिवेष्टित, छोटे तथा विस्तीर्ण सुन्दर वृक्षों के फूलों से सुसज्जित एवं कल्पवृक्षों से मण्डित इस श्रीवृन्दावन में पुष्प-भूषणों से भषित होकर रसमूर्त्ति श्रीयुगलकिशोर विचित्र-विचित्र विहार करते हैं।।5।।
परस्पर नैनों के कटाक्षों की चमत्कारिता में मृदु मधुर मुसक्यान के सहित अनेक छल पूर्वक एक दूसरे के पुलकित विग्रह को स्पर्श करने के लिए तथा दूसरे की कथामृत-रस-भरी नदी के प्रवाह द्वारा उमड़ी हुई श्रीराधा-कृष्ण की परस्पर महारति जय युक्त हो।।6।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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