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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
जिनमें विचित्र पल्लव निकल रहे हैं, जो विचित्र पुष्पों से लदे हुए है, जो विचित्र पत्र, मंजरी एवं विचित्र गुच्छ-स्तवक-युक्त हैं एवं विचित्र सुगन्धिपूर्ण, विचित्र मधु वर्षणकारी एवं विचित्र कान्तियुक्त हैं- ऐसे उज्ज्वल वृक्षों से (यह श्रीवृन्दावन) मण्डित है।।104।।
(यह श्री[[[वृन्दावन]]) श्रीराधाकृष्ण की गुप्त कथा-पाठ करने के कारण आश्चर्यमय माधुर्यपूर्ण श्रीशुकशरिकाओं की उच्चध्वनि से अत्यधिक आनन्द प्रादाता है, कानों को आनन्द देने ‘‘कुहु’’ ‘‘कुहु’’ का अव्यक्त मधुर आलाप करने वाली कोकिलाओं से मण्डित है, नृत्य करने वाले मत्त मयूरों से एवं नानाविध पक्षियों के आनन्द-कोलाहल से मुखरित हो रहा है।।105।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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