वृन्दावन महिमामृत -श्यामदास पृ. 23

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास

श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र

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6. श्रुति-स्तुति-व्याख्या - श्रीमद्भागवत[1] में वर्णित वेद-स्तुति की संस्कृत में विस्तृत व्याख्या है इस रचना में। इसमें श्रुतिरूपा गोपी तथा नित्य शुद्ध भावमयी गोपियों के बोधन प्रकार के दो भावों में व्यक्त किये गये हैं।

7. कामबीज व कामगायत्री व्याख्या - श्री सरस्वति पाद ने इस रचना में कामगायत्री के प्रति अक्षर की व्याख्या दी है। श्रीकृष्णस्वरूप कामगायत्री के किस अक्षर में उनका कौन सा अंग लक्षित हुआ है, वह भी इसमें अभिधानानुसार व्यक्त किया गया है।

8. श्रीगीतगोविन्द-व्याख्यान - इसमें गौड़ीयवैष्णवाचार्य रसिक अनन्य श्रीजयदेव-रचित श्री गीतगोविन्द की अद्भुत व्याख्या है श्री सरस्वती पाद कृत। इसकी प्राचीन प्रति भी श्री गोविन्द ग्रन्थागार में विद्यमान है। इस टीका के भाषा-माधुर्य, व्यख्यान-कौशल तथा रस निष्कासन में सरस्वति पाद का प्रचुरतर आवेश लक्ष्य करने योग्य है।

9. श्री गौर सुधाकर-चित्राष्टक - इसमें श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की अद्भुत महिमा-माधुरी का गान किया गया है।

इस प्रकार अनेक रचनायें श्री प्रबोधानन्द सरस्वती पाद की उपलब्ध हैं। इन रचनाओं का अध्ययन कर हम इस रहस्य का भी अनुभव करते हैं कि उन्होंने अपनी विविध रचनाओं में एकान्त-निष्ठा का निरूपण किया है। श्री चैतन्यचन्द्रामृत में गौर-निष्ठा का, श्री राधारस-सुधानिधि में राधा दास्य-निष्ठा का, श्री वृन्दावन महिमामृत में वृन्दावनधाम-निष्ठा का तथा श्री संगीत माधव में राधाकृष्ण-केलि विलास चिन्तन-निष्ठा का अभूतपूर्व वर्णन किया है।

किन्तु इस रहस्य को न समझ सकने वाले कुछ एक लोगों की बुद्धि भ्रान्त हो उठी है। वे श्री चैतन्य चन्द्रामृत, आाश्चर्य रास प्रबन्ध, श्रुति-स्तुति व्याख्या आदि रचनाओं के कर्ता श्री प्रबोधानन्द सरस्वती को पृथक् सिद्ध करने में लगे हैं और श्री वृन्दावन महिमामृत तथा श्री संगीत माधव आदि के रचयिता श्री प्रबोधानन्द सरस्वती पाद को पृथक सिद्ध करने में। श्री चैतन्य चन्द्रामृत आदि के रचयिता श्री प्रबोधानन्द सरस्वती को तो वे श्रीकृष्ण चैतन्य का कृपा पात्र कहने लगे हैं और श्री वृन्दावन महिमामृत तथा संगीत माधवादि के रचयिता श्री प्रबोधानन्द सरस्वती को श्री हितहरिवंश जी का कृपा पात्र बताने लगे हैं। यह उनकी एक नई सूझ है जो वर्ष 1977 में ही उनकी भ्रान्ति बुद्धि में उभर कर आई है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. परिव्राजकाचार्य श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र 1
2. व्रजविभूति श्री श्यामदास 33
3. परिचय 34
4. प्रथमं शतकम्‌ 46
5. द्वितीय शतकम्‌ 90
6. तृतीयं शतकम्‌ 135
7. चतुर्थं शतकम्‌ 185
8. पंचमं शतकम्‌ 235
9. पष्ठ शतकम्‌ 280
10. सप्तमं शतकम्‌ 328
11. अष्टमं शतकम्‌ 368
12. नवमं शतकम्‌ 406
13. दशमं शतकम्‌ 451
14. एकादश शतकम्‌ 500
15. द्वादश शतकम्‌ 552
16. त्रयोदश शतकम्‌ 598
17. चतुर्दश शतकम्‌ 646
18. पञ्चदश शतकम्‌ 694
19. षोड़श शतकम्‌ 745
20. सप्तदश शतकम्‌ 791
21. अंतिम पृष्ठ 907

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