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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
अनन्त चन्द्रों की दिव्य-चन्द्रिका के समूह के निमग्न, अनन्त चमत्कार समूह की स्वशोभायुक्त एवं श्रीहरि के अनन्त अनुराग में व्याकुल शरीर युक्त-श्रीवृन्दावन के पक्षी आदिकों को मैं प्रणाम करता हूँ।।96।।
दिव्य पुष्प-पल्लवादि एवं रमणीय लताओं से जो शोभित हो रहा है, जिसका द्वार दिव्य पुष्पों के तोरण आदि से सुसज्जित है, जिसके भीतर सखियों द्वारा रचित दिव्य पुष्पों की शय्या एवं सर्वत्र दिव्य दिव्य रत्नदीप विराजमान हैं।।97।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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