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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
सब पापों का प्रायश्चित-महत्-पुरुषों का अपराध हो जाने पर परम शरण लेने योग्य-समस्त स्वधर्मशिरोमणि एवं पुरुषार्थ चूड़ामणि केवल श्रीराधिका-विपिन (श्रीवृन्दावन) ही है।।88।।
हे प्रिय! हे वृन्दावन जीवन!! अति तुच्छ लोक-रंजन एवं इस विष्ठापात्र-शरीर मे आसक्त तथा स्वार्थ-नाश करने वाले लोगों का संग त्याग कर।।89।।
जो श्रीवृन्दावन के तृण-गुल्मादि का सच्चिदानन्दघन मूर्त्तिरूप में निशिदिन दर्शन करता है एवं उनको भक्तिपूर्वक निरन्तर प्रणाम करते हुए यहाँ (श्रीवृन्दावन में) वास करता है, उसको भाग्यवान् पुरुष भी नमस्कार करते हैं।।90।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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