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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
श्रीकृष्णानुराग की परम पराकाष्ठा-प्राप्त एवं उनके रूप शोभादि से परम कान्तियुक्त तथा श्रीराधिका के परम अधिक सौन्दर्य से मण्डित मुख्यधाम श्रीवृन्दावन का ही मैंने आश्रय कर लिया है।।67।।
श्रीयमुना पुलिन में श्रीवृन्दावन की मोहिनी कुंजों में श्रीराधाकृष्ण के चरणकमलों में एकमात्र दास्य भाव में मेरी आशा वृद्धि हो।।68।।
श्रीवृन्दाटवी के मंजुल कुंजमण्डल में कन्दर्पलीलामय दिव्यमूर्त्ति श्रीराधामुरलीमनोहर की एक साथ ही सेवा करने के लिये किसकी परम रसमयी आशा नहीं होती? ।।69।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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