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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
श्रीवृन्दावन के प्राणी यदि हर क्षण मेरे लिये महा घोर उपद्रव भी करें, तो भी तत्त्व की ओर देखते हुए मेरी उनके प्रति सदा भक्ति बनी रहे।।62।।
श्रीवृन्दावन के चोर भी सर्वपुरुषार्थ-चिन्तामणि स्वरूप है एवं लक्ष्मी, विष्णु आदि देवतागण भी उन्हें स्पर्श करने की (पाने की) इच्छा करते हैं।।।63।।
श्यामरसमय अद्भुत वनों युक्त श्रीवृन्दावन में एक पशु, एक पक्षी, एक तृण अथवा एक राजकण होकर भी मैं कृतार्थ हो जोऊँगा।।64।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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