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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
हृदय पर शत शत वाक्य-बाणों के प्रहार हों, चाहे सिर पर शत-शत पद-प्रहार ही हों, शत शत उपवास निश्चय ही होते रहें, तो भी उन जीवन-धन गौर नील रसघन-समुद्र मूर्त्ति श्रीयुगल किशोर को स्मरण करते हुए श्रीवृन्दावन में आनन्दपूर्वक वास करूँगा।।46।।
तुम ने जनम जन्म में प्रिय वधू के माला-चन्दनादि का भोग किया है- किन्तु अंहकार तो शान्त नहीं हुआ, बहुत सुयश प्राप्त कर लिया- तथा समस्त शास्त्रों का भी तुमने अभ्यास या अध्ययन कर लिया है, किन्तु मोह तो नाश हुआ नहीं, अतएवं समस्त विषयों से वैराग्य करके महानन्द की प्राप्ति के लिये श्रीवृन्दावन का भजन कर ।।47।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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