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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
श्रीवृन्दावन के कालिन्दी-पुलिनों में कल्पवृक्ष के नीचे सुन्दर लता-मण्डप में दिव्य किशोरीगणों से सुन्दर उपहारों के द्वारा भाली प्रकार सेवित उन आश्चर्य-लीलामय गौरश्याम-युगल की कब मैं तद्भावित आकृति-स्फूत्ति के साथ नित्य परिचर्या करूँगा?।।36।।
जिनके चरणों में नूपुर बज रहे हैं, विशाल कटिदेश में मेखला शोभित है, मध्यदेश जिनका क्षीण है, जो किशोर अवस्थायुक्त हैं, जिनके मुकुलस्तानों पर उज्ज्वल तारों के हार डोलायमान हैं, वेणियों के गुच्छे इधर उधर लटक रहे हैं, सुन्दर नासिकाओं में स्वर्णमणि जटित मुक्ता हैं विचित्र पतले वस्त्र धारण कर रही हैं- एसी स्वर्ण-वर्ण कान्तियुक्त श्रीराधा दासियां मेरे हृदय में स्फुरित हों।।37।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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