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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र
6. श्री राधारस सुधानिधि में कहीं भी श्री हितहरिवंश गोस्वामिपाद के आराध्य देव श्री नवरंगी लाल तथा श्री राधाबल्लभजी का नामोल्लेख नहीं है। 7. श्री राधाबल्लभीय-वैष्णवों का कहना है कि आचार्य पाद की हस्त लिखित चतुराशी, स्फुट वाणी यहाँ तक कि उनके द्वारा अपने पुत्रों को लिखे हुए दो पत्रों की भी प्रतियां सुरक्षित हैं। परन्तु किसी ने भी आज तक श्री राधारस सुधानिधि की उनके द्वारा हस्त लिखित प्रति सुरक्षित होने का उल्लेख नहीं किया। 8. श्री प्रबोधानन्द सरस्वति पाद की अन्यान्य रचनाओं की तरह श्री राधारस सुधानिधि में भी दैन्य, प्रार्थना, माहात्म्य, सेवाभिलाष वर्णित है। किन्तु श्री हितहरिवंश गोस्वामिपाद की रचनाओं में इन भावों के विपरीत लीला-दर्शन, उल्लास एवं आशीर्वाद वचनों तक का भी उल्लेख है- “जय श्री हित हरिवंश करहु दिन दोऊ अचल बिहार” चतुरासी-56 उनमें प्रणय-कोप भरे वचनों का भी प्रयोग दीखता है- “अपनी बात मोसौं कहिरी भामिनी औंगी-मौंगी रहत गरब की माती” चतुरासी-15 उनमें प्रणय-कोप भरे वचनों का भी प्रयोग दीखता है- 9. गौड़ीय अन्वेषकों का मत है कि मि. ग्राउस पर अनुचित दबाव डालकर इस रचना के विषय में श्री हितहरिवंश रचित सम्बन्धी पंक्तियां लिखाई गई हों ऐसा सम्भव है। क्योंकि आज भी ऐसा देखने में आता है कि जहाँ विश्वविद्यालयों में श्री राधाबल्लभीय अधिकारी उच्च पदस्थ हैं, वे गाइड के रूप में वैष्णव-दर्शन या वैष्णव आचार्यों के विषय में शोध करने वाले पी.-एच.डी. के शोध कर्त्ताओं को किसी न किसी प्रसंग में श्री राधारस-सुधानिधि श्लोक का उल्लेख कराकर उसे श्री हितहरिवंश रचित लिखने पर मजबूर करते हैं। शोध कर्ताओं को ऐसा करना पड़ता है। 10. श्री राधारस सुधानिधि का पाठ अथवा कथा-व्याख्या जिस अद्भुत रसमयी शैली से अब भी श्री गौड़ीय आचार्य करते हैं, उतना जितना लीला-चिन्तन रस-परिवेशन वे कर सकते हैं और कोई भी नहीं कर सकता। श्री राधा बल्लभीय आचार्य पाद भी श्रीमद् अद्वैत प्रभु-वंशज प्रभुपाद श्री आनन्द गोपाल गोस्वामी नवद्वीप निवासी द्वारा इसका पाठ श्रवण करते रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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