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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
जो लावण्यमय तरंगयुक्त त्रिवली-विभंगी सहित सुललित द्वाीण उदर के महासौन्दर्य को धारण कर रही हैं, (जिनके) शोभाराशिपूर्ण नितम्बों पर दिव्य लाल वसन शोभा दे रहा है, सुस्निग्ध उज्ज्वल दिन्य स्वर्ण कदलीखम्भ के सदृश जंघाओं की दीप्तिमय एकमात्र माधुर्य रसमय कान्ति-तरगों के द्वारा प्रियतम को चमत्कार जम्माती हैं-।।13।।
ज्योतिराशिमय सुन्दर जानुओं के एवं अति सुन्दर जघारूप मृणालों के सौन्दर्य को धारण कर रही है; प्रफुल्लित पादपद्मयुगल असीम महामाधुर्य सौन्दर्य से शोभित हो रहे हैं, उनका प्रतिअंग अद्भुत रूप, सौभाग्य, महाभाधुर्य सुस्निग्धता एवं श्रीश्यामसुन्दर के प्रेमजनक अनेक विकारों के कारण अतीव कान्ति चमत्कारिता की वर्षा कर रहा है- ।।14।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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