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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
जिनकी तिल के पुष्पवत् सुन्दर नासिका में मणि तथा स्वर्ण खचित सुन्दर मुक्ता शोभित हैं एवं कामदेव के अद्भुत दो स्वर्णभाथों (तरकसों) की भाँति नासिका की सुन्दर शोभा है, मोहन-अधर एकमात्र ताम्बूल के रस की रेखाओं से रंञित हैं इसलिये रसमय प्राणेश्वर के दन्तक्षत से हुआ श्याम-चिह्न भी नहीं दीखता, इन मोहन अधरों से वे जवापुष्प से भी अधिकतर लालवर्ण धारण कर शोभित हैं-।।11।।
नाना रत्नों से जटित पदक, अद्भुत कण्ठहार एवं एक लड़ी कण्ठिका धारण करने से उनका संखवत् त्रिरेखायुक्त कण्ठ अतीव उज्ज्वल हो रहा है। समस्त सौन्दर्य की खान, मुकुलाकृति (बिना खिले पुष्पवत्) रस से भरपूर एवं उच्च शोभामय स्तनों के साथ मिलित कञ्चुकी के ऊपर चमकते हुए हारों की शोभा से जो अति मनोरम हो रही हैं- ।।12।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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