विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
(श्रीराधा) कांची, नूपुर, कंकण, मणिमय कुण्डल, चूड़ासमूह केयूर, अंगूठी आदि भूषाणों से भूषित हो रही हैं, उनकी नासिका के आगे मुक्ता डोलायमान है एवं स्थूल नितम्ब देश पर गुच्छेदार विशाल वेणी लटक रही है, सीमन्तदेश मे उज्ज्वल रत्न शोभा दे रहा है, वेणी के मूल देशा पर सुगन्धित पुष्पों की माला है- ।।7।।
भाल में उज्ज्वल सुन्दर सिन्दूर-विन्दु स्वर्णचन्द्र की शोभा प्रकाश कर रही है, वह बार बार भ्रूभंगी समूह से अनन्त कोटि कामदेवों की सृष्टि करती हैं, उन्होंने नृत्यपरायण लोचन खंञ्जनों की कलाविद्या पर अधिकार पा लिया है एवं लीला से चंचल कटाक्ष-कामबाणों के द्वारा स्तब्ध प्रियतम को बार बार मोह प्रदान करती है- ।।8।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज