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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
जिनके प्रति अंग से दिव्य सुगन्धि फैल रही है अति मधुर प्रभा-राशि का प्रकाश हो रहा है, प्रति पद मे ही प्रेम के नाना विकार और माधुर्य का प्रवाह वर्द्धमान हो रहा है, सौन्दर्य समुद्र की पराकाष्ठा एवं निरन्तर रति को बढ़ाने वाला कन्दर्प-चांचल्य प्रकट को रहा है, जिन्होंने इन श्रीवृन्दावन के अधीशयुगल (श्रीराधाकृष्ण) के चरण कमलों को हृदय में धारण कर लिया है- उन भाग्यवान पुरुषों को मैं नमस्कार करता हूँ।।93।।
जहाँ गौरश्याम चतुरशिरोमणि दिव्य युगलकिशोर सदा नवीन नवीन केलि-विलासादि से विहार कर रहे हैं-उसी श्रीवृन्दावन का ही भजन कर ।।94।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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