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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
प्रफुल्लित वृक्षलताओं की शोभा से जो मंजुलतर हो रहा है, जहाँ भ्रमर-समूह गुजार कर रहे हैं, जाज्वलयमान नाना रत्नमय स्थलों से जो भूषित है, अनेक सौन्दर्यक्त कुंजों से जो मंण्डित है, जहाँ मत्त मयूरगण इधर-उधर नृत्यस एवं पक्षिराज कोलाहल कर रहे हैं तथा जो श्रीराधाकृष्ण के अशेष विहार-कौतुक से परिपूर्ण है- ऐसे श्रीवृन्दावन का मैं ध्यान करता हूँ।।91।।
वह कालिन्दी के विशाल पुलिन, वह वृन्दावन की शोभा, वह सुन्दर कदम्ब वृक्षों की घनी घनी सुशीतल छाया, वह वैदग्धीमय यौवनयुक्त शोभामय सखी-मण्डली, एवं वह गौरश्याम रसिक युगलकिशोर किसका मन नहीं मोहित करते-सबका मन मोहित करते हैं।।92।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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