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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
(जिस श्रीयमुना के किनारे पर) पुष्पधूलि बहुत ऊँची उड़ रहीं है जिससे पक्षी समूह उड़ने लगते हैं। वायु के द्वारा आगे-पीछे हिलोर लेले से अति मधुर उदार एवं उज्ज्वल वस्त्र के रूप में जो प्रतीत होती है एवं जिसके (कहीं) थोड़े और (कहीं) अगाध जल से (किनारे की) कुंजे प्रतिबिम्त हो रहीं है- वही श्रीराधाकृष्ण के आनान्द को बढ़ाने वाली श्री यमुना सुखपूर्वक तुम्हारा पालन करें रक्षा करें।।73।।
(श्रीवृन्दावन) शब्दायमान कलहंसों, सारसों एवं कारण्डवों से शोभित हो रहा है, दशों, दिशाएँ नवीन-नवीन श्वेत कमलों के समूह की सौरथ से सुवासित हो रही हैं, कह्लार, उत्पल, पंकजादि के वन में म्रमरीगण मत्त मधुकरों के साथ मिलकर एवं जगत को मोहित करने वाला संगीत अलाप रहीं हैं।।74।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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