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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
अतिशय रति-रस की उत्कण्ठा में श्रीराधाकृष्ण ने कालिन्दी के अप्राकृत निज-जल में इकट्ठे निमग्न होकर एक कमलों से घिरे हुए स्थान पर सुरत समरावेश में बहुत समय जब व्यतीत कर दिया, सखीगण कातर होकर प्राणप्रियतम-युगलकिशोर को ढूँढने लगीं।।69।।
(कभी) हँसते-हँसते कमल कैरवादि पुष्प एक दूसरे के अंगों पर मारते हैं, (कभी) निमीलित नेत्रों निमीलित नेत्रों से एक (दूसरे पर) जल वर्षा कर जीत जाता है और किसी एक के जल डुबकी लेने पर दूसरा उसे उठाता है- इस प्रकार गौरश्यामवर्ण दो त्योतियाँ यमुना जल में प्रकाशित हो रही हैं- लीला विस्तार कर रही हे।।70।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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