वृन्दावन महिमामृत -श्यामदास पृ. 164

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास

तृतीय शतकम्

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श्रीवृन्दावनवाहिनी तरणिजा स्वानन्दसन्दोह-वाः
पूरा रत्नघटामय-द्वयतटा समोत्तरंगध्वनिः।
आवर्तायितमृग्गणं विदधती हंसैश्च कारण्डवै
र्दात्यूहैरथ सारसादिभिरपि ध्येया हरेः प्रेयसी।।65।।

श्रीवृन्दावन में बहने वाली श्रीयमुना स्वानन्दराशिरूप जल के प्रवाह से युक्त है, इसके दोनों तीर रत्नमय हैं, उच्च-तरंगों की ध्वनि सामवेद का गानस्वरूप है, और यह जल के आवर्त्त (चक्र) में घिरे हुए पक्षियों की भी रक्षा करने वाली है, एवं हंस, कारण्डव (हंस विशेष) दात्यूह (पक्षी विशेष) सारस आदि पक्षी जहाँ विहार कर रहे हैं- ऐसी श्रीहरि श्रीयमुना ध्यान करने योग्य है।।65।।

जलग्रीड़ा-काले कनककमलिनयेकविपिने
निलीना श्रीराधा यदधिकमलं युम्बति हरौ।
स्ववक्त्राब्जभ्रान्त्या हसितमथ नालं स्थगयितुं
हसित्वा कान्तेनाध्रियत हसिताली-परिकरा।।66।।

जल क्रीड़ा के समय श्रीराधा एक स्वर्णकमलों के वन में छिप गई,जब श्रीहरि अपनी श्रीराधा के सुन्दर मुखकमल के भ्रम से प्रति कमल को चुम्बन करने लगे, तब श्रीराधा हँसी को न रोक सकीं, सखियाँ एवं सब परिकर जब हँस पड़े तब कान्त श्रीश्यामसुन्दर ने हँसते-हँसते प्रियतमा (श्रीराधा) को पकड़ लिया।।66।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. परिव्राजकाचार्य श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र 1
2. व्रजविभूति श्री श्यामदास 33
3. परिचय 34
4. प्रथमं शतकम्‌ 46
5. द्वितीय शतकम्‌ 90
6. तृतीयं शतकम्‌ 135
7. चतुर्थं शतकम्‌ 185
8. पंचमं शतकम्‌ 235
9. पष्ठ शतकम्‌ 280
10. सप्तमं शतकम्‌ 328
11. अष्टमं शतकम्‌ 368
12. नवमं शतकम्‌ 406
13. दशमं शतकम्‌ 451
14. एकादश शतकम्‌ 500
15. द्वादश शतकम्‌ 552
16. त्रयोदश शतकम्‌ 598
17. चतुर्दश शतकम्‌ 646
18. पञ्चदश शतकम्‌ 694
19. षोड़श शतकम्‌ 745
20. सप्तदश शतकम्‌ 791
21. अंतिम पृष्ठ 907

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