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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
श्रीवृन्दावन में बहने वाली श्रीयमुना स्वानन्दराशिरूप जल के प्रवाह से युक्त है, इसके दोनों तीर रत्नमय हैं, उच्च-तरंगों की ध्वनि सामवेद का गानस्वरूप है, और यह जल के आवर्त्त (चक्र) में घिरे हुए पक्षियों की भी रक्षा करने वाली है, एवं हंस, कारण्डव (हंस विशेष) दात्यूह (पक्षी विशेष) सारस आदि पक्षी जहाँ विहार कर रहे हैं- ऐसी श्रीहरि श्रीयमुना ध्यान करने योग्य है।।65।।
जल क्रीड़ा के समय श्रीराधा एक स्वर्णकमलों के वन में छिप गई,जब श्रीहरि अपनी श्रीराधा के सुन्दर मुखकमल के भ्रम से प्रति कमल को चुम्बन करने लगे, तब श्रीराधा हँसी को न रोक सकीं, सखियाँ एवं सब परिकर जब हँस पड़े तब कान्त श्रीश्यामसुन्दर ने हँसते-हँसते प्रियतमा (श्रीराधा) को पकड़ लिया।।66।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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