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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
नीलोत्पल, कमल, कह्लार और कुमुदनी आदि पुष्पों से प्रफुल्लित, भँवरों की गुंजार से मधुर एवं जिसमें सखियों के सहित श्रीराधा-मुरलीधर केलि करते हैं- ऐसी श्री यमुनाजी के, श्रीवृन्दावन में जो व्यक्ति बिना दर्शन किए जीवित रहता है- उसे क्या लाभ? अर्थात उसका जन्म वृथा है।।63।।
श्रीवृन्दावन से संयुक्त उस श्रीयमुनाजी को मैं नमस्कार करता हूँ, जो अनेक प्रकार के रत्नमय कमलों से नित्य मनोहर हो रही है, एवं आनन्द-समुद्र की कन्या है, अन्यान्य विचित्र दिव्य कुसुमों से सुशोभिता है, ऋग्, साम, यजु-वेदत्रय-शिरोमणि भी जिसकी सम्यक महिमा को नहीं जान सकते एवं मत्त मधुकरों तथा विविध पक्षियों के कोलाहल से मुखारित हो रही हैं।।64।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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