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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
श्रीवृन्दावन के कूकर शूकरादि का शरीर भी मैं धारण करूँगा, किन्तु और जगह देवताओं के लिए भी दुर्लभ सच्चिदानन्दमय शरीर को मैं नहीं चाहता।।53।।
श्रीवृन्दावन में अत्यन्त दुखों में ही मेरा यह जन्म बीत जाए, तथापि अन्य स्थान पर अलौकिक सुखसम्पत्ति हेतु एक निमिषकाल के लिए भी प्रार्थना नही करूँगा।।54।।
हथेली पर कपोल धर कर अश्रुपूर्ण नेत्रों से ‘‘कृष्ण’’ ‘‘कृष्ण’’ कहकर विलाप करते-करते कब श्रीवृन्दावन के निर्जन स्थान पर अति दीन-भाव से रहकर मैं कृतार्थ हाऊँगा।।55।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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