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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
वे (श्रीराधाकृष्ण) हरक्षण ही सर्वदा आविष्ट-चित्त रहने से कुछ भी नहीं जानते, भोजन तथा वस्त्र धारण करने आदि का कार्य भी सखियों के द्वारा कराते हैं।।35।।
निरन्तर वृद्धिशील महाननन्द के कारण महा उन्मत्त एवं नित्य एक-दूसरे के अंगसंगी वे गौरश्याम युगलकिशोर एकमात्र कामरस विषय उत्सवपूर्ण श्रीवन्दावनधाम में केवल काम-केलि समूह के द्वारा निशिदिन व्यतीत करते हैं।।36-37।।
वे (श्रीराधा कृष्ण) भजनानन्दीजनों के सब प्रकार के आनन्द रस की पराकाष्ठा को भी थुत्कार करके विराजमान हैं, जो एकान्त भाव से नित्य इनका भजन कर सकता है, मैं उसका भजन करता हूँ।।38।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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