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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र
श्री लाल दास कृत बंगला भक्त माल में जैसे वर्णित है- प्रभुई प्रबोधानन्द बलिया राखिल।। जिस समय श्री महाप्रभु नीलाचल की ओर बढ़े, ये भी उसी समय[1] श्री वृन्दावन की ओर चल दिए। उस समय श्री वृन्दावन एक अगम्य निर्जन वन था। समस्त लीला स्थान गुप्त पड़े थे। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की आज्ञा से सम्वत् 1565-66 में श्री लोकनाथ गोस्वामी, श्री भूगर्भ गोस्वामी एवं श्री सुबुद्धि राय, ये तीन महापुरुष ही क्रमशः श्री वृन्दावन में आ चुके थे। सं. 1571-72 में श्री प्रबोधानन्द सरस्वती भी श्री वृन्दावन में आ पहुँचे। तत्पश्चात् श्री रूप गोस्वामी पाद, श्री सनातन गोस्वामी पाद तथा श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी पाद भी श्रीमन्महाप्रभु की आज्ञा से श्री वृन्दावन में पधारे एवं श्री वृन्दावन के समस्त लीला स्थानों के जीर्णोद्धार करने के गौरव को श्री गौड़ीय वैष्णव वृन्द ने ही प्राप्त किया। इस सबके बाद ही अन्यान्य सम्प्रदायाचार्यों ने श्री वृन्दावन को अपना निवास क्षेत्र चयन किया। अपने भ्रातुष्पुत्र श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी को यहाँ मिलकर श्री सरस्वती पाद अतीव हर्षित हुए। श्री सरस्वती पाद ने भक्ति जात प्रेम महासिन्धु में निमग्न होकर रसराज-महाभाव स्वरूप श्री श्रीगौर सुन्दर के, अनन्त सौन्दर्य-माधुर्यमय लीला बिहारी श्री श्रीराधा माधव के तथा परमोज्ज्वलरसात्मक लीलास्थल श्री धाम वृन्दावन के जिस अद्भुत चमत्कारी चिन्मय सौन्दर्य-माधुर्य का आस्वादन किया, उसे आनन्दान्दोलित एवं प्रेमतरंगायित हृदयोद्गारों के द्वारा अपनी विभिन्न रचनाओं के रूप में रसिक समाज को प्रदान किया है। ग्रन्थावलि-1. श्रीचैतन्यचन्द्रामृत - यह स्तोत्र काव्य है जिसमें 143 श्लोक हैं। श्री आनन्दी ने[2] में इसकी रसिका स्वादिनी टीका रचना प्रकाशित की। इसमें श्री सरस्वती पाद की एकान्त गौर-भक्ति और निष्ठा का प्राधान्य है और साथ-साथ राधादास्य-निष्ठा का अद्भुत चित्रण है। राधा चरण नख-ज्योति के हृदय में उदित होने की प्रार्थना उन्होंने अनेक स्थानों पर प्रकाशित की है। राधा-दास्य निष्ठा के साथ वृन्दावन धाम निष्ठा का भी निरूपण किया है। 2. श्रीवृन्दावनमहिमामृतम् (वृन्दावन-शतक) - इस ग्रंथ रत्न की श्री सरस्वती पाद ने एक सौ शतकों में रचना की - यह बात प्रसिद्ध है, किन्तु केवल सतरह शतक ही प्राप्त हो सके हैं। श्री सरस्वती पाद के हृदय में श्री राधा-भाव-द्युति सुवलित श्रीकृष्ण चैतन्य देव की अनुकम्पा से श्री वृन्दावन के लोकातीत सौन्दर्य-माधुर्य की स्फूर्ति हुई। उसके फलस्वरूप उन्होंने इसका संकलन किया। इसकी भाषा-माधुर्य, वर्णन-सौन्दर्य, वस्तु-वैभव एवं कल्पना-गौरव संस्कृत-भाण्डार का एक निरुपम रत्न है। समस्त साधकों का निरतिशय कल्याण करने वाली सिद्ध हुई है उनकी यह रचना। वृन्दावन-रसोपासना, राधा रसोपासना तथा युगल किशोर-कुत्रजकेलि-रसोपासना का सुदृढ़ स्तम्भ है यह श्री वृन्दावन महिमामृत। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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