विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
तृतीय शतकम्
सत-रज-तम-इन तीनों गुणों से परे अत्यन्त उज्ज्वल शुद्ध महाकामबीज स्वरूप दिव्य ज्योति के स्वानन्द (निजानन्द) समुद्र में कोई एक अति मधुर आश्चर्यजनक द्वीप है, उसमें श्रीवृन्दावन अवस्थित है, उस श्रीवृन्दावन के गुप्त स्थान में रसपूर्ण कोई एक मनोहर कुंजावाटी विद्यमान है- वहाँ सुरति निधि श्रीराधिका-कृष्णचन्द्रका अति भावपूर्वक भजन कर।।11।।
श्रीराधाकृष्ण के उस दिव्य रूप एवं दिव्यकन्दर्पकेलि का दर्शन-करते तथा उनकी सुशीतल अमृतवाणी को सुन-सुनकर इस श्रीवृन्दावन में क्या (कभी) मैं भी रस के समुद्र में अवगाहन कर सकूँगा?।।12।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज