वृन्दावन महिमामृत -श्यामदास पृ. 14

श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास

श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र

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श्रीमन्महाप्रभु ने सरस्वती पाद को उठा कर आलिंगन किया और कहा - “श्री पाद! वेदान्त-सूत्र भगवान श्री वेद व्यास रचित है एवं श्री वेद व्यास रचित श्रीमद्भागवत ही वेदान्तसूत्रों का अपौरुषेय भाष्य है। भगवान एवं जीव में सेव्य-सेवक सम्बन्ध है। भगवत-भक्ति ही अभिधेय है। प्रेम ही प्रयोजन है। भगवान प्रेम के ही वशीभूत हैं। कलियुग में प्रेम-प्राप्ति का एकमात्र साधन श्री हरिनाम संकीर्तन है।”

इस प्रकार अनेक शिक्षा प्राप्त कर सरस्वती पाद परम कृतार्थ हो गए। श्री महाप्रभु हरि - ध्वनि पूर्वक अपने वास स्थान पर चले आए।

श्री सरस्वती पाद का जीवन पलट गया। कल वे शुष्क मायावादी-संन्यासी थे, आज वे हो गए-परमोनमत्त श्रीकृष्ण-प्रेमी। कुछ दिन पहले जो ब्रह्म-स्वरूप स्वाधीन पुरुष बनते थे, अब वे प्रेम भिखारिन अबलावत कृष्ण-विरह में कातर होकर कभी रोने लगते, कभी “हा गौर कृष्ण” “हा गौर कृष्ण” कहकर नृत्य करने लगते और कहा करते-[1]
निष्ठाां प्राप्ता व्यवहृतिततिलोकिकी वैदिकी वा
या वा लज्जा प्रहसनसमुद्गाननाट्योत्सवेषु।।
ये वाभवन्नहह सहजप्राणदेहार्थधर्म्मा।
गौरश्चैरः सकलमहरत् कोऽपि मे तीव्रवीर्यः।।

“अतिशय बलवान किसी गौर वर्ण चोर ने आकर मेरे निष्ठा प्राप्त लौकिकी एवं वैदिकी व्यवहार समूह एवं प्रहसन-उच्च स्वर संकीर्तन-नाट्यादि विषयक लज्जा तथा प्राण एवं देह के स्वाभाविक धर्म-ये समस्त हरण कर लिए हैं।”

श्रीमन्महाप्रभु ने जब काशी से नीलाचल जाने का निश्चय किया तब श्री सरस्वती पाद ने रात के समय महाप्रभु के निकट जाकर प्रार्थना की कि उन्हें भी महाप्रभु अपने साथ नीलाचल चलने की आज्ञा दें, कारण कि उनका विरह उनसे सहन नहीं हो सकेगा।” श्रीमन्महाप्रभु ने उन्हें अनेक प्रकार प्रबोध दिया और श्री वृन्दावन जाने की आज्ञा की। श्री सरस्वती पाद के आर्द्र होने पर श्री मन्महाप्रभु ने उन्हें विश्वास दिलाया कि जब श्री महाप्रभु को स्मरण करेंगे, महाप्रभु उन्हें दर्शन देंगे।

श्री सरस्वती पाद ने कहा -“प्रभो! आपके प्रबोध से मैं अति आनन्दित एवं कृतार्थ हुआ हूँ।”

श्री महाप्रभु ने आशीर्वाद दिया कि - यह आनन्द आपका प्रतिक्षण वर्द्धित हो और आज से आपका नाम भी हम “प्रबोधानन्द” रखते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीचैतन्यचन्द्रामृत 60

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श्रीवृन्दावन महिमामृतम्‌ -श्यामदास
क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. परिव्राजकाचार्य श्री प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद का जीवन-चरित्र 1
2. व्रजविभूति श्री श्यामदास 33
3. परिचय 34
4. प्रथमं शतकम्‌ 46
5. द्वितीय शतकम्‌ 90
6. तृतीयं शतकम्‌ 135
7. चतुर्थं शतकम्‌ 185
8. पंचमं शतकम्‌ 235
9. पष्ठ शतकम्‌ 280
10. सप्तमं शतकम्‌ 328
11. अष्टमं शतकम्‌ 368
12. नवमं शतकम्‌ 406
13. दशमं शतकम्‌ 451
14. एकादश शतकम्‌ 500
15. द्वादश शतकम्‌ 552
16. त्रयोदश शतकम्‌ 598
17. चतुर्दश शतकम्‌ 646
18. पञ्चदश शतकम्‌ 694
19. षोड़श शतकम्‌ 745
20. सप्तदश शतकम्‌ 791
21. अंतिम पृष्ठ 907

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