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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
जिसे सजातीय एवं विजातीय भेदरहित महानन्दघन ब्रह्म कहते रहैं, वह इस श्रीवृन्दावन में सविशेष चमत्कार-राशि की पराकाष्ठा को प्राप्त हुआ है।।97।।
हे चिच्छक्ति समुद्र के बिन्दुयुक्त चित्कण (जीव) तू चिच्छक्ति सागर के मनोहर और अनुपम, अद्भुताकार, सरस एवं (श्याम) कुंजर के द्वारा (प्रेम जल से) सिंचित वृनदावन-तत्त्व को समरण कर।।98।।
श्रीवृन्दावन में पारावार विहीन काम-नव-केलि-रस समुद्र में मग्न गौरश्याम विग्रह-युगल का भजन कर।।99।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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