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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
विमल सबीज ज्योति पूर्ण समुद्र-गर्भ में श्रीवृन्दावन नामक यह धाम स्फुरित हो रहा है। उसमें असीम माधुर्यशाली रति लम्पट गौर-नील कान्ति विशिष्ट दम्पति का अनुसरण कर ।।92।।
श्रीराधा के अतिमधुर अपांग विक्षेप (बंक-विलोकन) के द्वारा ही श्यामचन्द्र को अपने अति अधीन करके, उसके (श्रीराधा के) कामातुर पुलकित प्रति अंग से जो गौरकान्ति तरंग समूह उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त हुआ चारों ओर व्याप्त होकर सम्पूर्ण जगत्-मण्डल को ही प्लावित कर रहा है, उसी नित्य वृन्दावन रति-विहार के अद्भुत (तरंगादि) वस्तु-समूह का हम स्मरण करती है।।93।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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