विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
केशो को बांधती हैं, भूषणों को सजाती हैं, वस्त्र पहराती हैं। भोजन कराती हैं, वीणा वंशी आदि श्री हस्त में धारण कराती हैं। नृत्य कराने के अभिप्राय से वाद्य-यन्त्रों में आदरपूर्वक तान छेड़ती हैं एवं किसी भी प्रकार वेशभूषादि की शोभा समृद्धि के लिए अतिशय यत्नवती होती हैं।।90।।
विद्योतमान कामबीज स्वरूप विमल महाज्योतिपूर्ण आनन्घन श्रीवृन्दावन में जो अत्यन्त अद्भुत मधुर महाभाव की सर्वस्वमूर्त्ति है और जिसके प्रति अंग से स्वर्ण कान्ति रस-समुद्र उच्छलित हो रहा है- ऐसी किसी (अनिर्वचनीय) श्रीकिशोरी जी के साथ कोई अद्भुत मुधर रसैकमूर्त्ति श्रीश्याम-किशोर शोभा पा रहा है।।91।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज