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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
प्रियतम अपनी प्रिय कंकरी का सुवेश धारण कर श्रीराधा के पादपद्म को किसी अनिर्वचनीय मधुर भाव से लालन करते करते श्रीराधा को रमण करा रहे हैं- जो अपनी अनुचरी के प्रति तर्ज्जन कर रहीं है।, मैं उनका स्मरण करती हूँ।।77।।
जिसकी प्रेमानन्दात्मक, उत्तम स्वर्ण सदृश, सुन्दर तथा देदीप्यमान प्रत्येक अंगच्छटा से दशों दिशाएँ परिपूर्ण हो रही हैं, वही अति उन्मादी, किशोरमूर्त्ति रसविवश तथा केलिभूषण शोभित ज्योतिर्मय (श्रीराधा) विग्रह श्यामचन्द्र के वक्षस्थल पर रति-मद-पूर्णता से निर्लज्ज होकर भ्रष्ट वसन और छिन्नमाल होकर निकुंज में शोभा विस्तार कर रहा है।।78।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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