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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
नश्वर सुत, धन तथा स्त्री आदि श्री हरि की मायामय वस्तओं के लिए यत्न न कर, श्री वृन्दावन में स्वयं पड़े हुए पुरुषार्थ शिरोमणि का चयन (संग्रह) कर।।65।।
श्री वृन्दावन में श्रीमत् कलिन्दनन्दिनी (श्री यमुना) के तीर पर वृक्ष के नीचे रेति-केलि तृष्णा शील श्रीराधा-कृष्ण का अनन्य भाव से भजन कर।।66।।
इस श्रीवृन्दावन में श्रीमदमोहन के दरवाजे पर तुच्छ कुक्करी (कुतिया) होकर भले ही रहूँगा, तथापि और जगह लक्ष्मी की प्यारी सखी अथवा स्वयं लक्ष्मी बनकर भी रहने की इच्छा नहीं है।।67।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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