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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
इस प्रकार दिव्य विचित्र वेश-माधुर्य से मण्डित चारों दिशाओं में विचित्र कान्ति विस्तार करते हुए गौर-नील वपुधारी वे युगल किशोर- जो परस्पर प्रेमावेश में हास्य युक्त हैं, महासौन्दर्यशाली रंग में श्रीवृन्दावन की स्थावर-जंगमात्मक चिद्घन वस्तु मात्र को ही काञ्ची, नूपुर झंकार में एवं मुरली के मनोहर गीत में सम्यक प्रकार से मुग्ध करते हुए विराजमान हैं।।45।।
उसी मणिमय रंग मंच पर सखी गणों के मुखोच्चारित शब्द तथा मृदंग ध्वनि के होते ही परदे को दूर कर पुष्पाञ्जलि विकीर्ण करते-कतरे प्रवेश पूर्वक अतीव आश्चर्य जनक नाना प्रकार से हस्तभंगी सहित नृत्य करते हुए तथा महाश्चर्यमय अंगों व नेत्रों की भंगी के द्वारा सुमहान काम-रसोत्सव का विधान करने वाले मेरे प्राण प्रियतम युगल किशोर का भजन कोई पुण्यात्मा ही करता है।।46।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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