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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
श्यामसुन्दर के प्राणरूप मृग की एक मात्र क्रीड़ास्थली, उज्ज्वल रस में क्रीड़ा-परायण मानस रूप मीन के लिये दिव्य सरोवर के समान, श्यामरूप भ्रमर के लिये पद्मिनीरूपा, श्याम के काम तत्प-हृदय को शीतलता विधान करने वाली उज्ज्वल चन्द्रिका सदृश मेरी स्वामिनी अकेली श्यामा (श्री राधा) ही अतुलनीय श्याम सुनागर के साथ विहार करती हैं।।37।।
रत्नमय लता-वृक्षों से मण्डितविचित्र ज्योत्स्ना विस्तार करने वाले आनन्द मय पुष्पों से व्याप्त श्रीवृन्दावन में स्वर्ण-स्थली से शोभित कदम्ब की छाया में (विराजमान) गौर-नील वपुधारी श्री युगल किशोर ही हमारे नेत्रों में नित्य विराजमान रहें।।38।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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