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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
श्रीवृन्दावन के नवीन कुञ्जों में उस रसिक युगल किशोर की चिन्ता कर- जिनमें से एक की देह कान्ति नूतन स्वर्ण तथा चम्पकावलि को निन्दित करती है, और दूसरे की देह ज्योति दलित (प्रफुल्लित) नील कमल की शोभा को तिरस्कार करती है।।30।।
श्री वृन्दावन के नवीन कुञ्जों में जो महानंग से विह्वल हो रहे हैं, उन्हीं गौर श्याम रसिक युगल के चरण कमलों की परिचर्या कर।।31।।
कन्दर्परस में अति उन्मत्त उस युगल किशोर का पारस्परिक प्रेम नित्य ही वर्द्धित होता है। घन पुलकावलि से शोभित उस गौर-नील कान्ति विशिष्ट नवीन जोड़ी की निकुञ्ज-मण्डल में चिन्ता कर।।32।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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