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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
द्वितीयं शतकम्
हे श्री वृन्दावन! आपके वन की शोभा सर्वोत्कृष्ट है, हे परानन्द! आपके मधुर गुणों को जो निशिदिन गान करता है एवं हे वृन्दावन! जो कोटि जीवन भी आपके सामने तुच्छ जानता है, फिर उसके लिये संसार में ऐसी कौन सी वस्तु है जिसकी वह तृण के समान उपेक्षा नहीं कर सकता? ।।28।।
आनन्द सार के परमकाष्ठा भूत परम चमत्कार की सर्वस्वमूर्त्ति कोई एक श्याम किशोर नित्य अनंग-तरंगों में उन्मत्त होकर निज प्राणेश्वरी आद्य प्रणय-रस महामाधुर्य सार-मूर्त्ति किसी स्वर्ण कान्ति विशिष्ट किशोरी के साथ जहाँ नित्य क्रीड़ा करता है, आज ही से उसी श्री वृन्दावन का भजन कर।।29।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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