बृथा तुम स्यामहिं दूषन देति।
जो कछु कहौं सबै मुरली कौं, मन धौं देखौ चेति।।
पहिलैं आइ प्रतीति बढा़ई, को जानै यह घात।
बन बोली हम धाई आई, तजि गृह-जन, पितु मात।।
जैसे मधु पखान लपटान्यौ, तैसेइ याके बोल।
सूर मिली जिहिं भाँति आइ कै, त्यौं रहती अनमोल।।1297।।