- अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हत:।[1]
धन गया तो कुछ अधिक नहीं गया, सदाचार गया तो सब गया।
- अंतेष्वषि जातानां वृत्तमेव विशिष्यते। [2]
छोटे कुल नें उत्पन्न लोगों का भी वृत्त ही प्रशंसनीय माना जाता है।
- भूतिकर्माणि कुर्वाणं तं जना: कुर्वते प्रियम्।[3]
लोककल्याण के कर्म करने वाले से लोग प्रेम करने लगते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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