वृत्त (महाभारत संदर्भ)

  • अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हत:।[1]

धन गया तो कुछ अधिक नहीं गया, सदाचार गया तो सब गया।

  • अंतेष्वषि जातानां वृत्तमेव विशिष्यते। [2]

छोटे कुल नें उत्पन्न लोगों का भी वृत्त ही प्रशंसनीय माना जाता है।

  • भूतिकर्माणि कुर्वाणं तं जना: कुर्वते प्रियम्।[3]

लोककल्याण के कर्म करने वाले से लोग प्रेम करने लगते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उद्योगपर्व महाभारत 36.30
  2. उद्योगपर्व महाभारत 34.41
  3. अनुशासनपर्व महाभारत 104.10

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