बृंदाबन मोकौं अति भावत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


                                
बृंदाबन मोकौं अति भावत।
सुनहु सखा तुम सुबल, श्रीदामा, ब्रज तैं गौ-चारन आवत।
कामधेनु सुरतरु सुख जितने, रमा सहित बैकुंठ भुजावत।
इहिं वृंदाबन, इहिं जमुना-तट, ये सुरभी अति सुखद चरावत।
पुनि-पुनि कहत स्‍याम श्रीमुख सौं, तुम मेरैं मन अतिहिं सुहावत।
सूरदास सुनि ग्‍वाल चकृत भए, यह लीला हरि प्रगट दिखावत।।449।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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