विषया जात हरष्यौ गात।
ऐसे अंध, जानि निधि लूटत, परतिय सँग लपटात।
बरजि रहे सब, कह्यौ न मानत, करि-करि जतन उड़ात।
परै अचानक त्यौं रस-लंपट, तनु तजि जमपुर जात।
यह तौ सुनी ब्यास के मुख तैं, परदारा दुखदात।
रुधिर-मेद, मल-मूत्र कठिन कुच, उदर गंध-गंधात।
तन-धन-जोबन ता हित खोबत, नरक की पाछैं बात।
जो नर भलौ चहत तौ सो तजि, सूर स्याम गुन गात।।24।।
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