विदुर का दम की महिमा बताना

दुर्योधन भीष्म द्वारा कर्ण पर होने वाले आक्षेप को सुनकर कौरव सभा में अपने पक्ष की प्रबलता का प्रदर्शन करता हुआ कहता है कि "मैं आप, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, बाह्लिक तथा अन्‍य राजाओं के पराक्रम का भरोसा करके युद्ध का आरम्‍भ नहीं कर रहा हूँ। मैं, कर्ण तथा मेरा भाई दु:शासन हम तीन ही मिलकर युद्धभूमि में पांचों पाण्‍डवों को मार डालेंगे।" अब विदुर जी दम की महिमा बताते हैं, जिसका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व में यानसंधि पर्व के अंतर्गत अध्याय 63 में निम्न प्रकार हुआ है।[1]

विदुर द्वारा दम की महत्ता का वर्णन

विदुर ने कहा- सिद्वांत के जानने वाले वृद्ध पुरुष कहते हैं कि संसार में दम ही कल्‍याण का परम साधन है। ब्राह्मण के लिये तो विशेषरूप से है। वही सनातन धर्म है। जो दम रूपी गुण से युक्‍त है, उसी को दान, क्षमा और सिद्धि का यथार्थ लाभ प्राप्‍त होता है; क्‍योंकि दम ही दान, तपस्या, ज्ञान और स्‍वाध्‍याय का सम्‍पादन करता है। दम तेज की वृद्धि करता है। दम पवित्र एवं उत्तम साधन है। दम से निष्‍पाप एवं बढ़े हुए तेज से सम्‍पन्‍न पुरुष परब्रह्म परमात्मा को प्राप्‍त कर लेता है। जैसे मांसभोजी हिंसक पशुओं से सब जीव डरते रहते हैं, उसी प्रकार अदांत[2] पुरुषों से सभी प्राणियों को सदा भय बना रहता है, जिनको हिंसा आदि दुष्‍कर्मों से रोकने के लिये ब्रह्मा जी ने क्षत्रिय जाति की सृष्टि की है। चारों आश्रमों में दम को ही उत्‍तम व्रत बताया गया है। यह दम जिन पुरुषों के अभ्‍यास में आकर उनके अभ्‍युदय का कारण बन जाता है, उनमें प्रकट होने वाले चिह्नों का मैं वर्णन करता हूँ।[1]

विदुर द्वारा दमयुक्त मनुष्यों के लक्षणों का वर्णन

राजेन्‍द्र! जिस पुरुष में क्षमा, धैर्य, अहिंसा, समदर्शिता, सत्‍य, सरलता, इन्द्रियसंयम, धीरता, मृदुता, लज्‍जा, स्थिरता, उदारता, अक्रोध, संतोष और श्रद्धा- ये गुण विद्यमान हैं, वह पुरुष दांत [3] माना गया है। दमनशील पुरुष काम, लोभ, अभिमान, क्रोध, निद्रा, आत्‍मप्रशंसा, मान, ईर्ष्‍या तथा शोक- इन दुर्गुणों को अपने पास नहीं भटकने देता। कुटिलता और शठता का अभाव तथा आत्‍मशुद्धि यह दमयुक्‍त पुरुष का लक्षण है। जो निर्लोभ, कम-से-कम चाहने वाला, भोगों के चिंतन से दूर रहने वाला तथा समुद्र के समान गम्‍भीर है, उस पुरुष को दांत[4] कहा गया है।[1] जो सदाचारी, शीलवान, प्रसन्‍नचित्त तथा आत्म्ज्ञानी विद्वान है वह इस जगत में सम्‍मान पाकर मृत्‍यु के पश्चात उत्तम गति का भागी होता है। जिसे समस्‍त प्राणियों से निर्भयता प्राप्‍त हो गयी हो तथा जिससे सभी प्राणियों का भय दूर हो गया हो, वह परिपक्‍व बुद्धि वाला पुरुष मनुष्‍यों में श्रेष्‍ठ कहा गया है।

जो सम्‍पूर्ण भूतों का हित चाहने वाला और सबके प्रति मैत्रीभाव रखने वाला है, उससे किसी भी पुरुष को उद्वेग नहीं प्राप्‍त होता है। जो समुद्र के समान गम्‍भीर एवं उत्‍कृष्‍ट ज्ञानरूपी अमृत से तृप्‍त है, वही परमशांति का भागी होता है। जो कर्तव्‍य कर्मों द्वारा आचरित है तथा पहले साधु पुरुषों के द्वारा जिसका आचरण किया गया है, उसे अपनाकर शमदम से सम्‍पन्‍न पुरुष सदा आनन्‍दमग्न रहते हैं। अथवा जो ज्ञान से तृप्‍त जितेन्द्रिय पुरुष नैष्‍कर्म्‍य का आश्रय लेकर काल की प्रतीक्षा करता हुआ अनासक्‍त भाव से लोक में विचरता रहता है, वह ब्रह्मभाव को प्राप्‍त होने में समर्थ होता है। जैसे आकाश में पक्षियों के चरणचिह्न दिखायी नहीं देते हैं, वैसे ही ज्ञानानंद से तृप्‍त मुनि का मार्ग दृष्टिगोचर नहीं होता है अर्थात समझ में नहीं आता है। जो गृहस्‍थाश्रम को त्‍यागकर मोक्ष को ही आदर देता है, उसके लिये द्युलोक में तेजोमय सनातन स्‍थान की प्राप्ति होती है।[5]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 63 श्लोक 1-17
  2. असंयमी
  3. इन्द्रियविजयी
  4. इन्द्रियसंयमी
  5. महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 63 श्लोक 18-24

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सेनोद्योग पर्व
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संजययान पर्व
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प्रजागर पर्व
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सनत्सुजात पर्व
विदुर द्वारा सनत्सुजात से उपदेश देने के लिए प्रार्थना | सनत्सुजात द्वारा धृतराष्ट्र के प्रश्नों का उत्तर | ब्रह्मज्ञान में मौन, तप तथा त्याग आदि के लक्षण | सनत्सुजात द्वारा ब्रह्मचर्य तथा ब्रह्म का निरुपण | गुण दोषों के लक्षण एवं ब्रह्मविद्या का प्रतिपादन | योगीजनों द्वारा परमात्मा के साक्षात्कार का प्रतिपादन

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भगवद्यान पर्व
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सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव | पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश | कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण | दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश | कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना | युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन | दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक | दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक | युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक | बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान | रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन | धृतराष्ट्र और संजय का संवाद

उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना | पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना | पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर | पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना | धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति

रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथियों का परिचय | कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन | कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद | भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन | पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा | पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन | भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन

अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण | अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना | अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग | अम्बा और शैखावत्य संवाद | होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप | अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप | अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह | परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप | परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना | परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना | परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध | भीष्म और परशुराम का युद्ध | भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति | भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग | भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति | अम्बा की कठोर तपस्या | अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश | अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण | शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप | हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना | द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन | शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना | शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति | स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप | भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय | भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन | अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना | कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान | पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान

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