वारुणास्त्र

वारुणास्त्र रामायण तथा महाभारत कालीन युद्धों में प्रयोग किया जाने वाला एक दिव्यास्त्र था। महाभारत युद्ध में कई वीर योद्धाओं द्वारा वारुणास्त्र प्रयोग किये जाने का उल्लेख है। इसके प्रयोग से मेघ घिर आते थे और घनघोर वर्षा प्रारम्भ हो जाती थी।

  • 'महाभारत कर्ण पर्व' में उल्लेख मिलता है कि जब इन्द्रकुमार अर्जुन ने कर्ण पर शत्रुनाशक 'आग्नेयास्त्र' का प्रयोग किया। उस आग्नेयास्त्र का स्वरूप पृथ्वी, आकाश, दिशा तथा सूर्य के मार्ग को व्याप्त करके वहाँ प्रज्वलित हो उठा। इससे वहाँ समस्त योद्धाओं के वस्त्र जलने लगे। कपड़े जल जाने से वे सब-के-सब वहाँ से भाग चले। जैसे जंगल के बीच बाँस के वन में आग लगने पर जोर-जोर से चटकने की आवाज़ होती है, उसी प्रकार आग की लपट में झुलसते हुए सैनिकों का अत्यन्त भयंकर आर्तनाद होने लगा। प्रतापी सूतपुत्र कर्ण ने उस आग्नेययास्त्र को उद्दीप्त हुआ देखकर रणक्षेत्र में उसकी शांति के लिये वारुणास्त्र प्रयोग किया और उसके द्वारा उस आग को बुझा दिया। फिर तो बड़े वेग से मेंघों की घटा घिर आयी और उसने सम्पूर्ण दिशाओं को अन्धकार से आच्छादित कर दिया। दिशाओं का अंतिम भाग काले पर्वत के समान दिखायी देने लगा। मेघों की घटाओं ने वहाँ का सारा प्रदेश जल से आप्लावित कर दिया था। उन मेघों ने वहाँ पूवोक्त रूप से बढ़ी हुई अति प्रचण्ड आग को बड़े वेग से बुझा दिया। फिर समस्त दिशाओं और आकाश में वे ही छा गये। मेघों से घिरकर सारी दिशाएँ अन्धकाराच्छन्न हो गयीं; अतः कोई भी वस्तु दिखायी नहीं देती थी। तदनन्तर कर्ण की ओर से आये हुए सम्पूर्ण मेघसमूहों को 'वायव्यास्त्र' से छिन्न-भिन्न करके शत्रुओं के लिये अजेय अर्जुन ने गाण्डीव धनुष, उसकी प्रत्यंचा तथा बाणों को अभिमंत्रित करके अत्यन्त प्रभावशाली 'वज्रास्त्र' को प्रकट किया, जो देवराज इन्द्र का प्रिय अस्त्र है।"[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 89 श्लोक 13-27

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः