वारी-वारी हो राम हूँ वारी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन


वारी-वारी हो राम हूँ वारी, तुम आज्‍या गली हमारी ।।टेक।।
तुम देख्‍याँ बिन कल न पड़त है, जोऊँ बाट तुम्‍हारी ।
कूण सखी सूँ तुम रँग राते, हम सूँ अधिक पियारी ।
कि‍रपा कर मोहिं दरसण दीज्‍यो, सब तकसीर बिसारी ।
तुम सरणागत परमदयाला, भवजल तार मुरारी ।
मीराँ दासी तुम चरणन की, बार बार बलिहारी ।।114।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वारी वारी = बलिहारी जाती हूँ। आज्यो = आ जाओ। रँग राते = प्रेम में फँस गये हो। तकसीर = अपराध, भूल चूक।

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