वह सुधि आवत तोहिं सुदामा।
जब हम तुम बन गए लकरियनि, पठये गुरु की भामा।।
चपल समीर भयौ तिहिं रजनी, भीजै चारी जामा।
काँपत हृदय वचन नहि आवत, आए सत्वर धामा।।
तबहिं असीस दई परसन ह्वै, सफल होहु तुम कामा।
'सूरदास' प्रभु कौ जु मिलन जस, गावत सुर नर नामा।। 4233।।