वरन वरन वन फूलि रह्यौ।
हरषित ह्वै बृषभानुनंदिनी, सँग सब सखिनि कह्यौ।।
कुसुम कली देखत रुचि उपजति, यह कहि तिनहिं सुनावति।
आपुन चुनति गोद लै धारति, जुवतिनि कहति चुनावति।।
हँसत परस्पर दै दै तारी, स्याम लिये करवाही।
'सूरदास' प्रभु काम आतुरे, और ध्यान चित नाही।।2618।।