लोचन सपने कै भ्रम भूले -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


लोचन सपने कै भ्रम भूले।
जो छवि निरखत सो पुनि नाही, भरम हिडोरै झूले।।
इकटक रहत तृप्ति नहि कबहूँ, एते पर है फूले।
निदरे रहत मोहि नहिं मानत, कहत कौन हम तूले।।
मौतै गए कुभी के जर लौ, ऐसे वै निरमूले।
'सूर' स्याम-जल-रासि परे अब, रूप-रंग-अनुकूले।।2371।।

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